लॉकडाउन के बाद अलग-अलग राज्यों से पलायन करके मध्यप्रदेश लौटी आदिवासी महिलाएं इस भीषण गर्मी में बंजर पहाड़ी को हरा-भरा करने में जुटी हैं। मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य तीन जिलों धार, झाबुआ, अलीराजपुर में इन आदिवासी महिलाओं को मनरेगा के तहत काम मिल रहा है। स्थानीय स्तर पर करीब 37,000 मजदूरों को काम दिया जा रहा है, जिसमें महिलाओं की भागीदारी 60 फीसदी है।
इस समय मनरेगा के तहत जो भी काम दिए जा रहे हैं वो मुख्य रूप से पानी और पर्यावरण से संबंधित है। इसमें बंजर पहाड़ियों को हरा-भरा करने के लिए कंटूर ट्रेंच निर्माण से लेकर मेढ़ बंधान और कई ऐसे काम किए जा रहे हैं जो कि आने वाले समय में ग्रामीण क्षेत्र को पानीदार बनाएंगे।
इस पानीदार काम में महिलाओं की अपनी महत्वपूर्ण और अग्रणी भूमिका है। 42 डिग्री सेल्सियस के तापमान के बीच में महिलाएं जमकर पासीना बहा रही हैं। स्थानीय स्तर पर रोजगार देने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के शेष काम को पूरा करने का जिम्मा भी इनके ऊपर है। ऐसे में मजदूरों को रोजगार देने के नाम पर योजना के तहत काम हो रहा है। निर्माण काम में भी महिलाएं आगे निकल कर आयी हैं। महामारी के इस दौर में ये घर बनाने का काम पूरा कर रही हैं।
धार जिले के बोधवाड़ा गाँव की राधाबाई (30 वर्ष) बताती हैं, “अब काम बंद है अगर कमाएंगे नहीं तो खायेंगे क्या? शहर में कोई रोजगार नहीं मिला तो गाँव आ गये। घर में छोटे-छोटे बच्चे हैं मेहनत करेंगे तभी इनका पेट भर पायेंगे।”
लॉकडाउन के वजह से ये आदिवासी मजदूर गुजरात से पसीना बहाते करीब एक लाख पांच हजार मजदूर अपने गाँव को वापस आ गये। ये मजदूर बीते कुछ सालों में गुजरात के शहर की गंदी बस्तियों और तंग गलियों में रहकर अपना जीवन यापन कर रहे थे।
धार जिला के जनपद पंचायत सरदारपुर के सहायक परियोजना समन्यवक एसएस भाटी बताते हैं, “इस बार महिलाएं बड़ी संख्या में काम कर रही है। बीते सालों में हमें स्थानीय स्तर पर मजदूर डोंडी पिटवाने (सूचना देना) के बाद भी नहीं मिला करते थे। इस बार तो केवल सामान्य सूचना पर ही ग्रामों में लोगों ने काम पर आना शुरू कर दिया है। हमें हर रोज नए जॉब कार्ड बनाने के लिए भी काम करना पड़ रहा है।”